Explanation:
चक्रीय प्राकृतिक संसाधन-:
चक्रीय संसाधन से तात्पर्य है, ऐसे संसाधन जिसका कुछ संसाधनों के माध्यम से हम उसका बार बार प्रयोग किया उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए पानी। पानी एक चक्रीय संसाधन है।
जल एक नवीकरणीय चक्रीय प्राकृतिक संसाधन है जोकि पृथ्वी पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है कितु पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का केवल 3% ही अलवणीय अर्थात् मानव के लिए उपयोगी है, शेष 97%जल लवणयुक्त अथवा खारा है जो केवल नौ संचालन व मछली पकड़ने के अलावा मानव के लिए प्रत्यक्ष उपयोग में नहीं आता।
संसाधन-:
हमारे पर्यावरण में उपलब्ध हर उस वस्तु को संसाधन कहते हैं, जिसका इस्तेमाल हम अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये कर सकते हैं, जिसे बनाने के लिये हमारे पास प्रौद्योगिकी है और जिसका इस्तेमाल सांस्कृतिक रूप से मान्य है।
संसाधन होते नहीं बन जाते हैं यह ई. जिम्मरमैन का कथन है।
जब तक हम उसका प्रयोग अपने फायदे के लिए नहीं करते हैं, तब तक उसे हम संसाधन नहीं कह सकते हैं।
संसाधन के प्रकार:
उत्पत्ति के आधार पर-: जैव और अजैव संसाधन
समाप्यता के आधार पर-: नवीकरण योग्य और अनवीकरण योग्य संसाधन
स्वामित्व के आधार पर-: व्यक्तिगत, सामुदायिक, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संसाधन
विकास के स्तर के आधार पर-: संभावी, विकसित भंडार और संचित कोष
उत्पत्ति के आधार पर संसाधन के प्रकार
जैव संसाधन-:
जो संसाधन जैव मंडल से मिलते हैं उन्हें जैव संसाधन कहते हैं। उदाहरण: मनुष्य, वनस्पति, मछलियाँ, प्राणिजात, पशुधन, आदि।
अजैव संसाधन-:
जो संसाधन निर्जीव पदार्थों से मिलते हैं उन्हें अजैव संसाधन कहते हैं। उदाहरण: मिट्टी, हवा, पानी, धातु, पत्थर, आदि।
चट्टानें जैविक संसाधन नहीं अजैविक संसाधन हैं।
समाप्यता के आधार पर संसाधन के प्रकार:
नवीकरण योग्य संसाधन:
जिन संसाधनों को हम भौतिक, रासायनिक या यांत्रिक प्रक्रिया द्वारा नवीकृत या पुन: उत्पन्न कर सकते हैं, उन्हें नवीकरण योग्य संसाधन कहते हैं। उदाहरण: सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल, जीव जंतु, आदि।
अनवीकरण योग्य संसाधन:
जिन संसाधनों को हम किसी भी तरीके से नवीकृत या पुन: उत्पन्न नहीं कर सकते हैं, उन्हें अनीवकरण योग्य संसाधन कहते हैं। उदाहरण: जीवाष्म ईंधन, धातु, आदि।
इन संसाधनों के निर्माण में लाखों वर्ष लग जाते हैं।
इसलिए इनका नवीकरण करना असंभव होता है।
इनमें से कुछ संसाधनों को पुन: चक्रीय किया जा सकता है, जैसे कि धातु।
लेकिन कुछ ऐसे संसाधनों का पुन: चक्रीकरण नहीं किया जा सकता है, जैसे कि; जीवाष्म ईंधन।
स्वामित्व के आधार पर संसाधनों के प्रकार:
व्यक्तिगत संसाधन-:
जिन संसाधनों का स्वामित्व निजी व्यक्तियों के पास होता है, उन्हें व्यक्तिगत संसाधन कहते हैं। उदाहरण: किसी किसान की जमीन, घर, आदि।
सामुदायिक संसाधन-:
जिन संसाधनों का स्वामित्व समुदाय या समाज के पास होता है, उन्हें सामुदायिक संसाधन कहते हैं। उदाहरण: चारागाह, तालाब, पार्क, शमशान , कब्रिस्तान, आदि।
राष्ट्रीय संसाधन-:
जिन संसाधनों का स्वामित्व राष्ट्र के पास होता है, उन्हें राष्ट्रीय संसाधन कहते हैं। उदाहरण: सरकारी जमीन, सड़क, नहर, रेल, आदि।
अंतर्राष्ट्रीय संसाधन-:
जिन संसाधनों का नियंत्रण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा किया जाता है, उन्हें अंतर्राष्ट्रीय संसाधन कहते हैं। उदाहरण के लिये समुद्री क्षेत्र ।
किसी भी देश का नियंत्रण उस देश की तट रेखा से 200 किमी तक के समुद्री क्षेत्र पर ही होता है।
200 किमी से आगे का समुद्री क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय संसाधन की श्रेणी में आता है।
विकास के स्तर के आधार पर संसाधन के प्रकार:
संभावी संसाधन-:
जिन संसाधनों का उपयोग वर्तमान में नहीं हो रहा होता है, उन्हें संभावी संसाधन कहते हैं। उदाहरण: गुजरात और राजस्थान में उपलब्ध सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा।
विकसित संसाधन-:
जिन संसाधनों का सर्वेक्षण हो चुका है और जिनके उपयोग की गुणवत्ता और मात्रा निर्धारित हो चुकी है, उन्हें विकसित संसाधन कहते हैं।
भंडार-:
जो संसाधन उपलब्ध तो हैं लेकिन उनके सही इस्तेमाल के लिये हमारे पास उचित टेक्नॉलोजी का अभाव है, उन्हें भंडार कहते हैं। उदाहरण: हाइड्रोजन ईंधन।
संचित कोष-:
जिस संसाधन के उपयोग के लिये टेक्नॉलोजी तो मौजूद है लेकिन अभी उसका सही ढ़ंग से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। उदाहरण: नदी के जल से पनबिजली परियोजना द्वारा बिजली निकाली जा सकती है।
लेकिन अभी इसका इस्तेमाल सीमित पैमाने पर ही हो रहा है।
संचित कोष भंडार का ही एक भाग होता है।
सतत पोषणीय विकास-:
ऐसे विकास को सतत पोषणीय विकास कहते हैं, जब विकास होने के क्रम में पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे और भविष्य की जरूरतों की अनदेखी न हो।